लोकसभ चुनाव से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट (supreme courd) ने एक बडा फैसला दिया है और इलेक्टोरल बांड (electoral bond) पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए है। अपने फैसले में सुपी्रम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड स्कीम (electoral bond) को अवैध बताते हुए कहा है कि इलेक्टोरल बांड स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। दरअसल वर्ष 2017 में अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बांड पेश किया था और दावा करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बांड स्कीम से पारदर्शिता आएगी और चुनावों मे उपयोग होने वाले काले धन पर अंकुश लग सकेगा। हालांकि इलेक्टोरल बांड स्कीम को लेकर कुछ लोगों का यह भी कहना था कि यदि इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाएगी तो स्कीम के माध्यम से काला धन (Black money) चुनावों इस्तेमाल व्हाईट मनी (white money) के रूप में इस्तेमाल हो सकता है।
मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने फैसला सुनाया। इस मौके पर चीफ जस्टिस ने कहा कि पॉलिटिकल प्रॉसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी वह प्रक्रिया है जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है। फैसले में कहा गया कि राजनीतिक दल ब्योरा दे जिन्होंने 2019 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा हासिल किया है। राजनीतिक दल की ओर से कैश किए गए हर इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल दे, कैश करने की तारीख का भी ब्योरा दे। साथ ही सारी जानकारी 6 मार्च 2024 तक इलेक्शन कमीशन को दे और इलेक्शन कमीशन 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इसे पब्लिश करे।