जयपुर— बच्चों में होने वाले दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए प्रदेश में ‘‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रीटमेंट ऑफ रेयर डिजीज‘‘ बनाया जाएगा। जयपुर स्थित जेके लोन अस्पताल में यह सेंटर बनाने के लिए जल्द एक प्रस्ताव भारत सरकार को भिजवाया जाएगा। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह ने डचेन मस्कुलर डिस्ट्रोफी (डीएमडी) रोग से ग्रसित बच्चों की समस्याओं के समाधान हेतु शासन सचिवालय में आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में इस संबंध में निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि आर्थिक संसाधनों के अभाव में आमजन बच्चों में होने वाले दुर्लभ रोगों का समुचित उपचार प्राप्त करने में बेहद परेशानी का सामना करते हैं। ऐसे में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह ने इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने की पहल की है। सिंह ने निर्देश दिए कि दुर्लभ रोगों के उपचार एवं रिसर्च के लिए सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज में मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की स्थापना की जाए। इसके लिए उन्होंने चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों को विस्तृत प्रस्ताव बनाकर भेजने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि जेके लोन अस्पताल में वर्तमान में संचालित नोडल सेंटर फॉर रेयर डिजीज का सुदृढ़ीकरण किया जाए तथा इस सेंटर में पर्याप्त मानव संसाधन की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने निर्देश दिए प्रदेशभर में जन्म लेने वाले नवजात शिशु की जन्मजात बीमारियों का जल्द पता लगाने के लिए यूनिवर्सल न्यूबोर्न स्क्रीनिंग प्रोग्राम चलाया जाए। साथ ही, सभी मेडिकल कॉलेज एवं जिला अस्पतालों में दुर्लभ रोगों से पीड़ित मरीजों की समस्याओं का समाधान करने के लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाए। इन अधिकारियों को दुर्लभ रोगों से पीड़ित मरीजों की पहचान एवं उपचार के लिए समुचित प्रशिक्षण भी दिया जाए। सिंह ने डीएमडी रोग के उपचार एवं रोकथाम के लिए व्यापक आईईसी गतिविधियां किए जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस रोग के लिए कार्यरत एनजीओ एवं सिविल सोसायटीज से समन्वय कर रोगियों के बेहतर उपचार एवं सहायता के लिए सार्थक प्रयास किए जाएं। स्कूलों में शिक्षकों को इस रोग से पीड़ित बच्चों की पहचान कर उनके उपचार में सहयोग करने के लिए प्र्रशिक्षत किया जाए।
सिंह ने कहा कि प्रदेश में संभाग स्तर पर कार्यरत चिकित्सकों में से शिशु रोग विशेषज्ञों, न्यूरोलॉजी विभाग एवं फिजियोथैरेपी विभाग का पैनल बनाकर महीने में एक बार मस्कुलर डिस्ट्रोफी से पीड़ित मरीजों का उपचार करवाया जाए। इस रोग से पीड़ित मरीजों के उपचार के लिए संबंधित क्लिनिकल ट्रायल्स शुरू की जाए तथा एथिकल कमेटी से इस संबंध में शीघ्र स्वीकृति प्राप्त की जाए। इस रोग के उपचार के लिए आवश्यक दवाओं एवं वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के भी निर्देश दिए।